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उत्तराखंड का भू कानून जुमला? डीपीएस रावत ने खोली धामी सरकार की पोल

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देहरादून : देहरादून में हाल ही में पहाड़ी एकता मोर्चा के संस्थापक इंजीनियर डीपीएस रावत ने एक प्रेस वार्ता में उत्तराखंड की धामी सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार का बहुप्रचारित भू कानून महज एक जुमला साबित हुआ है।

रावत के मुताबिक, सरकार ने भले ही भू कानून लागू करने का ढिंढोरा पीटा हो, लेकिन इसमें सौ गज का प्रावधान रखकर बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदने का रास्ता खुला छोड़ दिया है। क्या यह वाकई में पहाड़ों की जमीन को बचाने की कोशिश है या फिर एक और दिखावा? उनके सवाल ने कईयों को सोचने पर मजबूर कर दिया।

रावत ने तंज कसते हुए कहा कि अगर एक परिवार के चार लोग मिलकर सौ-सौ गज के प्लॉट खरीद सकते हैं, तो पुराने और नए कानून में आखिर फर्क क्या रह गया? पहले बीजेपी और कांग्रेस की सरकारों ने 500 वर्ग मीटर जमीन खरीदने की छूट दी थी, फिर इसे घटाकर 250 वर्ग मीटर किया गया।

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अब सौ गज का नया प्रावधान लाकर सरकार ने एक बार फिर विधानसभा में कानून पारित कर दिया। लेकिन सवाल वही है—क्या सरकार की नीयत साफ है? रावत का दावा है कि पिछले 24 सालों में उत्तराखंड की जमीनों का चीरहरण हुआ है और इसमें बीजेपी, कांग्रेस से लेकर यूकेडी तक की मिली-जुली सरकारें शामिल रही हैं।

उन्होंने एक और गंभीर मुद्दा उठाया। रावत के अनुसार, उत्तराखंड के गठन के बाद से आज तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच परिसंपत्तियों का बंटवारा ठीक से नहीं हुआ। आज भी उत्तर प्रदेश के पास उत्तराखंड की करोड़ों रुपये की संपत्ति दबी हुई है, लेकिन इस पर कोई सरकार मुंह नहीं खोलती।

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क्या यह चुप्पी किसी साजिश का हिस्सा है? रावत ने एनडी तिवारी और त्रिवेंद्र रावत की सरकारों पर भी हमला बोला। उनके मुताबिक, इन सरकारों ने मसूरी, ऋषिकेश, नैनीताल, अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी इलाकों की मुख्य जमीनों को बेच डाला, जहां आज हजारों रिसॉर्ट खड़े हो चुके हैं।

रावत ने चेतावनी दी कि अगर सरकार हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सख्त भू कानून लागू नहीं करती, तो बाहरी लोग सरकारी मिलीभगत से जमीन खरीदते रहेंगे। उन्होंने तंज भरे लहजे में कहा, “एक दिन सरकार 25 गज का प्रावधान भी ले आएगी, लेकिन तब तक सारी जमीन बिक चुकी होगी।” उनके शब्दों में दर्द साफ झलकता था जब उन्होंने कहा कि आज पहाड़ों में लोग अपनी जमीन बेचकर मालिक नहीं, बल्कि चौकीदार बनकर नौकरी कर रहे हैं।

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क्या यह वाकई में वही उत्तराखंड है जिसके सपने स्थानीय लोगों ने देखे थे? रावत का यह बयान न सिर्फ सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है, बल्कि पहाड़ी जनता के बीच एक नई बहस को भी जन्म दे रहा है।

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