Fastest news from Uttarakhand

सिंहाचलम मंदिर – यहाँ पर वराह और नृसिंह अवतार का सयुंक्त रूप विराजित है माँ लक्ष्मी के साथ

आंध्रपदेश के विशाखापट्टनम से महज 16 किमी दूर सिंहाचल पर्वत पर स्थित है सिंहाचलम मंदिर। इस मंदिर भगवान नृसिंह का घर कहा जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है की यहाँ पर यहाँ पर भगवान् विष्णु के वराह और नृसिंह अवतार का सयुंक्त रूप है जो की माँ लक्ष्मी के साथ विराजित है। इस मंदिर की एक अन्य खासियत यह है कि यहां भगवान नृसिंह की मूर्ति पर पूरे समय चंदन का लेप होता है। केवल अक्षय तृतीया को ही एक दिन के लिए ये लेप मूर्ति से हटाया जाता है, उसी दिन लोग असली मूर्ति के दर्शन कर पाते हैं।

होली का त्योहार सतयुग में भक्त प्रहलाद से जुड़ा है। कहानी है कि हिरण्यकशिपु के बेटे प्रहलाद को विष्णु भक्त होने के कारण पिता ने यातनाएं दी थीं। बुआ होलिका ने उसे गोद में बैठाकर जलाने की कोशिश की लेकिन खुद जल गई। उसी प्रहलाद को हिरण्यकशिपु से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था। वैसे तो भारत में भगवान नृसिंह के कई मंदिर हैं लेकिन विशाखापट्टनम में सिंहाचलम मंदिर है, इसे भगवान नृसिंह का घर कहा जाता है।

मान्यता है कि इस मंदिर को हिरण्यकशिपु के भगवान नृसिंह के हाथों मारे जाने के बाद प्रहलाद ने बनवाया था। लेकिन वो मंदिर सदियों बाद धरती में समा गया। सिंहाचलम देवस्थान की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इस मंदिर को प्रहलाद के बाद पुरुरवा नाम के राजा ने फिर से स्थापित किया था। पुरुरवा ने धरती में समाए मंदिर से भगवान नृसिंह की मूर्ति निकालकर उसे फिर से यहां स्थापित किया और उसे चंदन के लेप से ढ़ंक दिया। तभी से यहां इसी तरह पूजा की परंपरा है, साल में केवल वैशाख मास के तीसरे दिन अक्षय तृतीया पर ये लेप प्रतिमा से हटाया जाता है। इस दिन यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है।

माना जाता है राजा पुरुरवा एक बार अपनी पत्नी उर्वशी के साथ वायु मार्ग से भ्रमण कर रहे थे। यात्रा के दौरान उनका विमान किसी नैसर्गिक शक्ति से प्रभावित होकर दक्षिण के सिंहाचल क्षेत्र में जा पहुँचा। उन्होंने देखा कि प्रभु की प्रतिमा धरती के गर्भ में समाहित है। उन्होंने इस प्रतिमा को निकाला और उस पर जमी धूल साफ की। इस दौरान एक आकाशवाणी हुई कि इस प्रतिमा को साफ करने के बजाय इसे चंदन के लेप से ढाँककर रखा जाए। इस आकाशवाणी में उन्हें यह भी आदेश मिला कि इस प्रतिमा के शरीर से साल में केवल एक बार, वैशाख माह के तीसरे दिन चंदन का यह लेप हटाया जाएगा और वास्तविक प्रतिमा के दर्शन प्राप्त हो सकेंगे। आकाशवाणी का अनुसरण करते हुए इस प्रतिमा पर चंदन का लेप किया गया और साल में केवल एक बार ही इस प्रतिमा से लेप हटाया जाता है।

सिंहाचलम मंदिर का महत्व | Importance Of Simhachalam Temple

आंध्रप्रदेश के विशाखापट्‍टनम में स्थित यह मंदिर विश्व के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। यह समुद्री तट से 800 फुट ऊँचा है और उत्तरी विशाखापट्‍टनम से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर पहुँचने का मार्ग अनन्नास, आम आदि फलों के पेड़ों से सजा हुआ है। मार्ग में राहगीरों के विश्राम के लिए हजारों की संख्या में बड़े पत्थर इन पेड़ों की छाया में स्थापित हैं। मंदिर तक चढ़ने के लिए सीढ़ी का मार्ग है, जिसमें बीच-बीच में तोरण बने हुए हैं।

शनिवार और रविवार के दिन इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। साथ ही यहाँ दर्शन करने के लिए सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से जून तक का होता है। यहाँ पर मनाए जाने वाले मुख्य पर्व हैं वार्षिक कल्याणम (चैत्र शुद्ध एकादशी) तथा चंदन यात्रा (वैशाख माह का तीसरा दिन)।

Leave A Reply

Your email address will not be published.