गुरुवार को होगा “अनंत चतुर्दशी” का पर्व :-ज्योतिषाचार्य प. तरुण झा!
ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान,सहरसा के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा के अनुसार 28 सितम्बर, गुरुवार को अनंत चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन होगा,भादो मास मे यह मनाया जाता है,कई जगह पर इस व्रत को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अनंत सूत्र को बांधने और व्रत रखने से व्यक्ति की कई प्रकार की बाधाओं से मुक्ति हो जाती है, यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है,इस व्रत को करने से भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अनंत चतुर्दशी का पूर्ण लाभ लेने के लिए लोग व्रत के सभी नियमों को बहुत ही ध्यान से और संयम से मानते हुए पूरा करते हैं, कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से घर की नकारात्मक उर्जा, सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है और घर की खुशहाली का कारण बनती है।
महत्व :- देशभर में यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है और हिंदू पुराणों में तो इसका काफी ज्यादा महत्व है, इसी दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है।,अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश उत्सव का अंत होता है,इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है।,अनंत चौदस का व्रत रखना काफी फलदाई माना जाता है,इस पर्व के अनुसार इस दिन अनंत सूत्र बांधा जाता है, यह अनंत सूत्र कपड़े सुतिया रेशम का बना हुआ होता है,विधि पूर्वक पूजा करने के बाद यह सूत्र लोग अपने बाजू पर बांध लेते हैं,महिलाएं अपने बाएं हाथ पर जब कि पुरुष अपने दाएं हाथ पर अनंत सूत्र बांधते हैं,अनंत सूत्र बांधते वक्त वह अपने परिवार की दीर्घायु और अनंत जीवन की कामना करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस सूत्र को बांधने से सभी प्रकार की समस्याएं खत्म हो जाती हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता है।
अनंत कथा से जुड़ी पौराणिक कथा :- पुराणों के अनुसार यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है और यह कथा युधिष्ठिर से संबंधित है; कथा के अनुसार पांडवों के राज्य हीन होने के बाद श्री कृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने का सुझाव दिया,इसके बाद पांडवों ने हर हाल में राज्य वापस पाने के लिए व्रत करने के लिए सोचा परंतु उनके मन में कई प्रश्न थे। जिनका उत्तर उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा जैसे कि यह अनंत कौन है और इस का व्रत क्यों करना है। उत्तर देते हुए श्री कृष्ण ने कहा कि श्री हरि के स्वरूप को ही अनंत कहा जाता है और यदि उनका व्रत रखा जाए तो ऐसा करने से जिंदगी में आने वाले सारे संकट खत्म हो जाते हैं।
इस पर्व से एक और कथा प्रचलित है,उस कथा के अनुसार सुमंत नाम का एक वशिष्ठ गोत्र ब्राह्मण इसी नगरी में रहता था, उनका विवाह महा ऋषि भृगु की पुत्री दीक्षा से हुआ,इन दोनों की संतान का नाम सुशीला था। दीक्षा की जल्दी ही मृत्यु हो गई इसलिए सुमंत ने कर्कशा नामक कन्या से विवाह कर लिया,उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कौंडिण्य मुनि से करवाया परंतु कर्कशा के क्रोध के चलते सुशीला एकदम साधन हीन हो गई और वह अपने पति के साथ जब एक नदी पर पहुंची तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते हुए देखा। उसने भी अपनी समस्याओं के निवारण के लिए चतुर्दशी व्रत रखना शुरू किया और इस तरह व्रत रखने के बाद उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो गई।