कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा; जिस धारा ने कश्मीर को भारत से अलग करने का प्रयास किया, समय ने उसी धारा को हटा दिया: अमित शाह
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह (Amit Shah) ने ‘जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख: सातत्य और सम्बद्धता का ऐतिहासिक वृत्तांत’ पुस्तक के विमोचन के दौरान यह स्पष्ट किया कि ‘आजादी के बाद दशकों तक कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने का प्रयास किया। लेकिन, अमृतकाल में धारा 370 नामक उस नासूर को ही समाप्त कर दिया गया, जिसके बल पर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने का प्रयास किया जा रहा था।’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में कश्मीर में आतंकवाद के इकोसिस्टम को पूरी तरह समाप्त कर, शांति और स्थिरता को मजबूती देने का अभूतपूर्व काम किया गया है। धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर में आतंकी घटनाओं में 70% से अधिक कमी हुई है और ये सिद्ध करता है कि धारा 370 आंतकवाद की पोषक थी। कश्मीर में पथराव की 2018 में 2,100 घटनाएँ हुईं, जबकि 2023 में एक भी घटना नहीं हुई है।
33 साल बाद कश्मीर घाटी में थियेटर में नाइट शो चला है, ताजिया का जुलूस निकला है और श्रीनगर के लाल चौक पर कृष्ण जन्माष्टमी की झांकी देखने को मिली है। ‘जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख: सातत्य और सम्बद्धता का ऐतिहासिक वृत्तांत’ नामक इस पुस्तक ने बारीकी से यह साबित किया है कि देश के हर हिस्से में मौजूद संस्कृति, भाषाएँ, लिपियाँ, आध्यात्मिक विचार, तीर्थ स्थलों की कलाएँ, वाणिज्य और व्यापार हजारों साल से कश्मीर में मौजूद थे।
लगभग 8 हजार साल पुराने ग्रंथों के संदर्भों पर आधारित इस पुस्तक ने स्पष्ट रूप से साबित किया है कि कश्मीर पहले भी भारत का अविभाज्य अंग था, आज भी है और हमेशा रहेगा। यह पुस्तक प्रमाणित करती है कि देश के कोने-कोने में बिखरी हुई हमारी समृद्ध विरासत हजारों वर्षों से कश्मीर में उपस्थित थी। कश्मीर से कन्याकुमारी और बंगाल से गुजरात तक विविध संस्कृतियों, धर्मों, खान-पान और पहनावे वाले इस देश में दशकों तक इतिहासकारों ने एक मिथक बनाकर रखा कि भारत की आजादी की कल्पना ही बेईमानी है।
दरअसल इतिहासकारों खासकर वामपंथी इतिहासकारों ने भारत को जियोपॉलिटिकल नजरिए से देखा और लिखा, जबकि दुनिया भर में भारत एकमात्र देश है जो जियोकल्चर है और जिसकी सीमा संस्कृतियों से बनी है। नेपाल से काशी, बिहार, कश्मीर और अफगानिस्तान तक की बौद्ध धर्म की यात्रा को संदर्भों के साथ प्रमाणित करने वाली यह पुस्तक बताती है कि भगवान बुद्ध के बाद परिष्कृत किए गए सिद्धांतों का जन्म स्थान भी कश्मीर था और आज के बौद्ध धर्म के विद्यमान बौद्ध धर्म के सिद्धातों की जन्मभूमि भी कश्मीर ही है।
कश्मीर के 8 हजार साल के इतिहास को इस पुस्तक में ऐसे उकेरा गया है मानो एक पात्र में गंगा को समाहित किया जा रहा हो। शासकों को खुश करने के लिए लगभग 150 साल तक इतिहास का मतलब दिल्ली के दरीबे से बल्लीमारान और लुटियंस से जिमखाना तक सिमट कर रह गया था। लेकिन मोदी सरकार में अंत्योदय की राजनीति करने वाले अमित शाह ने इतिहासकारों को संदेश दिया कि शासकों को खुश करने के लिए लिखे गए इतिहास से निजात पाने का समय अब आ गया है। कश्मीरी, बाल्टी, डोगरी, लद्दाखी जैसी भाषाओं को शासन की भाषा बनाकर उसे दीर्घायु करने का काम मोदी सरकार ने किया है।