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पहली बार रोबोट से हुई एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट कार्डियक सर्जरी में अपोलो के डॉक्टरों को मिली सफलता

देहरादून। चिकित्सा के क्षेत्र में दिल्ली के अपोलो अस्पताल ने एक बार फिर बड़ी कामयाबी हासिल की है डॉक्टरों को पहली बार रोबोट के जरिए मरीज की एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट कार्डियक सर्जरी में सफलता हासिल हुई। जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के बरेली निवासी एक 29 वर्षीय मरीज को गंभीर हालत में दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया।

यहां मरीज को गंभीर महाधमनी वाल्व रिगर्जिटेशन का पता चला जिसके लिए डॉक्टरों ने रोबोटिक सहायता वाली वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी की। डॉक्टरों का कहना है कि उनकी यह उपलब्धि रोगी देखभाल में अपोलो की उन्नत चिकित्सा प्रौद्योगिकी की क्षमता को उजागर कर रही है।

नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के कार्डियोलॉजी और कार्डियो थोरेसिक सर्जरी के सलाहकार डॉ. एमएम यूसुफ और डॉ. वरुण बंसल ने बताया हमारे लिए यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण मामला था क्योंकि मरीज की हालत तेजी से बिगड़ रही थी। उसे और भी कई दिक्कतें थी जिनके रहते हुए रोबोटिक असिस्ट एवीआर सबसे अच्छी और सबसे कम जोखिर भरी कार्डियक सर्जिकल प्रक्रिया को अपनाया गया। यह शल्य चिकित्सा विशेषज्ञता और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के बीच एक सहजीवन का उदाहरण है।

डॉक्टरों ने बताया कि जब मरीज को अस्पताल लाया गया तब सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द की शिकायत थी। चिकित्सा निदान करने पर गंभीर एनीमिया, किडनी की समस्या और हृदय की कार्यशैली मंद पाई गई। मरीज की हालत लगातार बिगड़ रही थी जिसके चलते बीते 26 अक्तूबर को उन्हें इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के कार्डियोलॉजी और एमआईसीएस व रोबोटिक कार्डियो थोरेसिक सर्जरी के सलाहकार डॉ. एमएम यूसुफ और डॉ. वरुण बंसल की देखरेख में भर्ती कराया गया।

यहां डॉक्टरों ने रोबोटिक तकनीक का उपयोग करके एक उल्लेखनीय सफलता हासिल की। 27 अक्तूबर को डॉ. यूसुफ और डॉ. बंसल के नवोन्मेषी दृष्टिकोण और उन्नत रोबोटिक तकनीक के उपयोग से बहुत छोटा चीरा लगाया जिससे सर्जरी बिना किसी जटिलता के संपन्न हुई और रोगी की रिकवरी भी काफी तेज हुई।

डॉक्टरों का कहना है कि इस तकनीक से रोगी की सुरक्षा, आराम और जीवन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद मिली है। सर्जरी के बाद एक दिन आईसीयू और कुछ दिन सामान्य बेड पर रहने के बाद मरीज सकुशल घर लौट गया।

उन्होंने बताया कि इस तकनीक से मरीज को बड़ा चीरा लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इससे मरीज का रक्तस्राव कम होता है और उसकी रिकवरी भी काफी तेजी से होती है। बरेली के युवा रोगी से यह देखा जा सकता है कि 26 अक्तूबर को भर्ती होने वाला रोगी पूरी प्रक्रिया के बाद एक नवंबर को सकुशल अपने घर लौट गया। उस दौरान रोगी के हृदय और किडनी की कार्यप्रणाली में सुधार देखा गया।

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