एसटीएस ग्लोबल ने हिमालयी क्षेत्र के लिए क्लाइमेट रिस्क इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ पर आयोजित किया विचार-विमर्श
उत्तराखंड और सिक्किम में जलवायु संबंधित आपदाओं के खतरे को कम करने के लिए सीआईएस की तत्काल ज़रूरत पर ज़ोर दिया
देहरादून: हिमालयी क्षेत्र में क्लाइमेट इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (सीआईएस) की कमी को पूरा करने के लिए एंड-टू-एंड मानवीय प्रयासों में विशेषज्ञ टेक्नो-एनवॉयर्नमेंट कैटलिस्ट एसटीएस ग्लोबल ने आज ग्राफिक ऐरा (डीम्ड टू बी यूनीवर्सटी), देहरादून में छठे वर्ल्ड कांग्रेस ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट (डब्ल्यूसीडीएम) के अंतर्गत राज्यस्तरीय विचार-विमर्श सम्मेलन का आयोजन किया।
जाने-माने वक्ताओं ने इस मौके पर मौजूद लोगों को संबोधित किया। इनमें श्री रायाप्पा कंचरला, टेक्निकल डायरेक्टर, छठे डब्ल्यूसीडीएम, प्रोफेसर विनोद शर्मा, वाइस चेयरमैन, सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, डॉ. पीयूष रौतेला, एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर, उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए), डॉ. बिक्रम सिंह, डायरेक्टर, भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) उत्तराखंड, श्री दिलीप सिंह, नेशनल प्रोजेक्ट मैनेजर, यूएनडीपी इंडिया, प्रोफेसर इयान डेविस, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, आपदा प्रबंधन और डॉ. अंशू शर्मा, सह-संस्थापक, एसटीएस ग्लोबल शामिल रहे।
कृषि, राजस्व, पशुपालन, वन एवं पर्यावरण, स्वास्थ्य सेवा, ग्रामीण विकास जैसे सरकारी विभागों के अधिकारी और अन्य तकनीकी विशेषज्ञ और एजेंसियों के लोगों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया और उत्तराखंड व सिक्किम जैसे हिमालयी राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए सीआईएस के बारे में चर्चा की।
इस चर्चा के दौरान एसटीएस ग्लोबल ने आपसी सहयोग के साथ किए गए हज़ार्ड वल्नरेबिलिटी रिस्क एसेसमेंट (एचआरवीए) से मिली जानकारी साझा की। इसका आयोजन उत्तराखंड के 15 चुनिंदा ग्राम पंचायतों में किया गया और उनके भौतिक, पर्यावरण, आर्थिक, सामाजिक और संस्थागत पहलुओं के बारे में भी जानकारी जुटाई गई।
एचवीआरए के आधार पर प्रोजेक्ट टीम ने नुकसान की घटनाओं के लिए चुनी गई ग्राम पंचायतों का विश्लेषण किया। फोकस ग्रुप की चर्चाओं (एफजीडी) और उसके आधार पर किए गए विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए चार ग्राम पंचायतों (फिटारी, ओसला, हर्षिल और धराली) को जोखिम के लिहाज़ से काफी अधिक स्कोर मिला।
इसका स्पष्ट रूप से मतलब है कि इन गांवों में कई तरह के नुकसान का अत्यधिक जोखिम है और इसके लिए योजना बनाने व भविष्य के लिहाज़ से प्रयासों को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। इस विचार-विमर्श का उद्देश्य महत्वपूर्ण चुनौतियों और स्थानीय स्तर पर सीआईएस को बढ़ावा देने के अवसरों के बारे में जानकारी देना और इस प्रयास को बढ़ावा देने के लिए सरकार और अन्य पक्षों के लिए सिफारिशें तैयार करना है।
इस कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए श्री दिलीप सिंह, नेशनल प्रोजेक्ट मैनेजर, यूएनडीपी इंडिया ने कहा, “देश के सबसे पुराने राज्यों में खतरा सबसे अधिक है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान आपदाओं की आवृत्ति और उनके विस्तार का दायरा काफी बढ़ गया है। आगामी कॉप28 से पहले किया गया यह प्रयास, मौसम की चेतावनियों और जलवायु के रुझानों को किसानों व स्थानीय समुदायों द्वारा समझने और उन पर प्रतिक्रिया देने के तरीके में बदलाव लाने के हमारे लक्ष्य को दर्शाता है।”
श्री रायाप्पा कंचरला, टेक्निकल डायरेक्टर, छठा डब्ल्यूसीडीएम ने कहा, “हिमालयी क्षेत्र में खतरे चेतावनी दे रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगे हैं। रिपोर्ट से मिली जानकारी से सीआईएस को समय से और भरोसेमंद तरीके से ऐक्सेस करने की ज़रूरत का पता चलता है, ताकि समुदायों को सुरक्षित किया जा सके, किसानों को सशक्त बनाया जा सके और जलवायु से मिली जानकारी को ज़मीनी स्तर पर व्यावहारिक कार्रवाई में बदलने की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।”
क्लाइमेट इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (सीआईएस) के बारे में डॉ. अंशू शर्मा, सह-संस्थापक, एसटीएस ग्लोबल ने कहा, “बढ़ती आपदाओं के कारण, डेटा और तकनीक आधारित समाधानों का महत्व बढ़ता जा रहा है, ताकि निर्णय लेने की प्रक्रिया और जलवायु को बेहतर बनाया जा सके। ऐसे प्रयास आपदाओं को कम करने के प्रयासों की दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाते हैं। सीआईएस प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंच सके और इसका उचित ढंग से इस्तेमाल किया जा सके, यह पक्का करने के लिए यह ज़रूरी है कि राज्यों और समुदाय के स्तर पर क्षमताएं विकसित की जाएं।”
डॉ. पीयूष रौतेला, एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर, यूएसडीएमए ने कहा, “पिछले एक दशक के दौरान उत्तराखंड ने बाढ़ और बादल फटने की कई घटनाओं का सामना किया है, इसलिए ऐसा सिस्टम तैयार करना ज़रूरी था जिससे सभी पक्षों को भविष्य की प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयार रहने में मदद मिले। यूएनडीपी और एसटीएस ग्लोबल जैसे संगठन, सरकार के प्रयासों में विशेषज्ञता और गहराई लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।”
एसटीएस ग्लोबल के बारे में
एसटीएस ग्लोबल एक टेक्नो-एनवॉयर्नमेंट इंटरप्राइज़ है जो बड़े पैमाने पर एंड-टू-एंड मानवीय प्रयासों को बढ़ावा देता है और उन्हें अंतिम पड़ाव पर मौजूद नागरिक तक पहुंचाता है। यह सीमाओं से परे जाकर समुदायों को मज़बूत और सशक्त बना रहा है। यह संगठन जलवायु की वजह से होने वाले जोखिमों और आपदाओं के समुदाय केंद्रित, विस्तार योग्य और बदलाव लाने वाले समाधान उपलब्ध कराता है।
यह संगठन स्थाई आवास की डिज़ाइन तैयार करने, विश्लेषण और योजना, कौशल विकास और क्षमता निर्माण, ज्ञान प्रबंधन के क्षेत्र में और सामाजिक कारणों के लिए टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए सार्वजनिक और निजी संस्थानों के साथ मिलकर काम करता है।
संगठन का को-बीओडी (बिल्ड-ऑपरेट-डिलिवर) मॉडल ग्राहकों के लिए विस्तार-केंद्रित मानवीय इनोवेशन बनाने और डिज़ाइन करने, आपदा एवं जलवायु योजना, स्थायी ढांचा (प्राकृतिक आवास) और क्षमता निर्माण में मदद करता है। संगठन ने टेक्नो-एनवॉयर्नमेंट डिजिटल प्लेटफॉर्म में निवेश किया है, जैसे कि एआई आधारित पर्यावरण जोखिम विश्लेषण और शहर से लेकर देश तक प्रभाव पर आधारित ज़मीनी डेटा के आधार पर आपदा ई-वॉलेट। यह लोगों द्वारा संचालित प्रयासों को विस्तारयोग्य डिलिवरी व्हीकल के तौर पर इस्तेमाल करता है।
एसटीएस ने 8 देशों में अपनी सेवाएं दी हैं और अपना प्रभाव छोड़ा है, ये देश हैं भारत । नेपाल । बांग्लादेश । अफगानिस्तान । मालदीव । फिलिपींस । इंडोनेशिया । श्रीलंका । इन देशों में एसटीएस ने विश्व बैंक, जीआईजे़ड, भारत सरकार, सी40, रिलायंस फाउंडेशन, स्विस डेवलपमेंट कोऑपरेशन, यूएनडीपी, एडीआरआरएन जैसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ काम किया है। स्थायी आर्किटेक्चर और आपदा संबंधी योजना के हमारे दो प्रमुख कार्य, दुनिया में सबसे ऊंचाई पर बनी रेलवे लाइनों में से एक के लिए आपदा प्रबंधन योजना और नेपाल में मालिकों द्वारा संचालित गृह पुनर्निर्माण कार्यक्रम हैं।