बिहार : बिहार की सियासी जमीन पर विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने को है, और महागठबंधन की तैयारियां जोरों पर हैं। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के बीच गठजोड़ की तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही है, लेकिन सीटों के बंटवारे और मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर रस्साकशी अभी खत्म नहीं हुई है।
मंगलवार को दिल्ली में होने वाली एक अहम बैठक में तेजस्वी यादव, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के बीच चर्चा होगी, जिस पर सबकी निगाहें टिकी हैं। आखिर क्या है इस सियासी गुत्थी का राज? आइए, इसे समझते हैं।
गठबंधन की राह में चुनौतियां
बिहार में महागठबंधन का हिस्सा बनने के लिए कांग्रेस और आरजेडी तैयार तो हैं, लेकिन दोनों दलों के बीच कुछ मुद्दों पर सहमति बनना बाकी है। सबसे बड़ा सवाल है कि अगर गठबंधन जीतता है, तो मुख्यमंत्री कौन होगा? आरजेडी तेजस्वी यादव को इस पद के लिए पेश कर रही है, लेकिन कांग्रेस इस नाम पर पूरी तरह सहमत नहीं दिख रही। कुछ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि तेजस्वी के चेहरे को आगे करने से सवर्ण वोटरों का एक बड़ा हिस्सा खिसक सकता है। इसीलिए कांग्रेस की रणनीति है कि अभी मुख्यमंत्री के नाम पर खुलकर बात न की जाए। पार्टी चाहती है कि चुनाव बाद सबसे बड़ी पार्टी के आधार पर यह फैसला हो, जैसा कि लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष चुना गया था।
सीटों का बंटवारा
सीटों के बंटवारे को लेकर भी दोनों दलों के बीच तनातनी चल रही है। पिछली बार कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन वह केवल 19 पर ही जीत हासिल कर पाई थी। कांग्रेस का दावा है कि उसे दी गईं कई सीटें ऐसी थीं, जहां जेडीयू और बीजेपी का दबदबा था। इस बार कांग्रेस “सम्मानजनक और जीतने योग्य” सीटों की मांग कर रही है। दूसरी ओर, आरजेडी का कहना है कि गठबंधन में उनकी भूमिका बड़ी है, और सीटों का बंटवारा उनकी ताकत के हिसाब से होना चाहिए। इस सियासी जोड़-तोड़ में दोनों दल अपनी-अपनी ताकत आजमाने में जुटे हैं।
पशुपति पारस का दांव
महागठबंधन की इस रणनीति में एक नया मोड़ तब आया, जब पशुपति पारस ने गठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई। एनडीए से अलग हो चुके पारस का कहना है कि अगर उन्हें उचित सम्मान और भूमिका दी जाए, तो वह महागठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। यह प्रस्ताव गठबंधन के लिए एक मौका हो सकता है, लेकिन इससे सीटों के बंटवारे की गुत्थी और उलझ सकती है। क्या पारस की एंट्री से गठबंधन को फायदा होगा, या यह नया सिरदर्द बनेगा? यह सवाल अभी अनुत्तरित है।
मुद्दों की जंग में एकजुटता की तलाश
चुनावी रणनीति के तहत कांग्रेस और आरजेडी को यह भी तय करना है कि वे किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएंगे। बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बिहार की आर्थिक स्थिति जैसे मुद्दे गठबंधन के लिए अहम हो सकते हैं। साथ ही, विपक्षी दलों खासकर बीजेपी और जेडीयू को घेरने की रणनीति भी बनानी होगी। कांग्रेस के बिहार में बढ़ते सक्रियता और राहुल गांधी के दौरे इस बात का संकेत हैं कि पार्टी इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
तेजस्वी और कांग्रेस: क्या बनेगी सहमति?
तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेतृत्व की बैठक में कई सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद है। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की बात को बार-बार दोहराया है, लेकिन कांग्रेस अभी इस पर खुलकर समर्थन नहीं दे रही। कांग्रेस चाहती है कि पहले सीटों का बंटवारा और अन्य औपचारिकताएं पूरी हों। अगर दोनों दल एकजुट होकर रणनीति बनाते हैं, तो महागठबंधन बिहार में बड़ा उलटफेर कर सकता है। लेकिन अगर मतभेद बने रहे, तो यह गठबंधन की राह में बाधा भी बन सकता है।
बिहार की जनता का मूड
बिहार की जनता इस बार बदलाव की उम्मीद में है। महागठबंधन के सामने चुनौती है कि वह एकजुट होकर जनता के सामने एक ठोस विकल्प पेश करे। कांग्रेस और आरजेडी की यह बैठक न सिर्फ गठबंधन की दिशा तय करेगी, बल्कि यह भी साफ करेगी कि बिहार की सियासत में अगला कदम कौन उठाएगा।