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Mumbai Attack : तहव्वुर राणा और हेडली की सीक्रेट मीटिंग में क्या तय हुआ था? पूछताछ में हुआ बड़ा खुलासा!

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Mumbai Attack : मुंबई, वह शहर जो कभी नहीं सोता, 26 नवंबर 2008 को एक ऐसे खूनी मंजर का गवाह बना, जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। लेकिन हाल ही में सामने आए कुछ गोपनीय दस्तावेजों ने इस हमले से जुड़ा एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। क्या आप जानते हैं कि इस आतंकी साजिश को पहले एक बार टाल दिया गया था? जी हां, अरब सागर की उफनती लहरों ने उस दिन आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। आइए, इस अनकही कहानी को करीब से जानते हैं।

समुद्र की लहरों ने रोकी साजिश

2008 की शुरुआत में मुंबई को दहलाने की साजिश रची जा रही थी। गोपनीय दस्तावेजों के मुताबिक, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी इस हमले को अंजाम देने के लिए पूरी तरह तैयार थे। लेकिन प्रकृति ने उनके रास्ते में एक अनपेक्षित रुकावट खड़ी कर दी। अरब सागर की ऊंची लहरें उस समय इतनी उग्र थीं कि आतंकियों को अपनी योजना को कुछ समय के लिए स्थगित करना पड़ा। यह बात सुनकर शायद आपको आश्चर्य हो, लेकिन समुद्र की यह बेचैनी आतंकियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई थी।

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डेविड हेडली और तहव्वुर राणा की गुप्त मुलाकात

इस साजिश के केंद्र में थे डेविड कोलमैन हेडली, एक ऐसा शख्स जिसने मुंबई के ताज होटल को निशाना बनाने की योजना में अहम भूमिका निभाई। अप्रैल 2008 में हेडली अमेरिका गए और मई में शिकागो में अपने साथी तहव्वुर राणा से मिले। इस मुलाकात में हेडली ने राणा को बताया कि हमले को फिलहाल टाल दिया गया है, क्योंकि समुद्र अभी शांत नहीं है। चौंकाने वाली बात यह है कि राणा को इस साजिश की हर बारीकी की जानकारी थी। अमेरिकी जांच एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है, जिसे उन्होंने भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के साथ साझा किया। लेकिन राणा ने पूछताछ में झूठ बोला कि उन्हें हमले की कोई जानकारी नहीं थी।

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समुद्र का इंतजार क्यों?

आप सोच रहे होंगे कि आखिर समुद्र का शांत होना आतंकियों के लिए इतना जरूरी क्यों था? इसका जवाब इस हमले के तरीके में छिपा है। 26 नवंबर 2008 को लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकी कराची से समुद्री रास्ते के जरिए मुंबई पहुंचे। उन्होंने पहले पाकिस्तानी जहाज अल-हुसैनी का इस्तेमाल किया और फिर भारतीय मछली पकड़ने वाली नाव कुबेर को हाईजैक कर लिया।

कुबेर के चालक दल की हत्या करने के बाद वे मुंबई के तट पर उतरे और फिर उस खौफनाक रात को अंजाम दिया, जिसे दुनिया कभी नहीं भूल सकती। ऊंची लहरों की वजह से समुद्री यात्रा जोखिम भरी थी, इसलिए आतंकियों ने लहरों के शांत होने का इंतजार किया।

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मुंबई की बहादुरी और सबक

26/11 के हमले में मुंबई ने जो दर्द सहा, वह आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा है। नौ आतंकियों को उसी समय मार गिराया गया, जबकि अजमल कसाब को बाद में फांसी दी गई। लेकिन इस नए खुलासे ने एक बार फिर हमें याद दिलाया कि आतंक की साजिशें कितनी गहरी और सुनियोजित हो सकती हैं। यह भी सिखाता है कि प्रकृति कई बार अनजाने में हमारी रक्षा करती है। मुंबई का यह किस्सा न सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह हमें सतर्क रहने और अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की प्रेरणा भी देता है।

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