केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की एक कथा जब पांडवों से बचने के लिए महादेव ने रखा बैल का रुप

चमोली ( प्रदीप लखेड़ा ): भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ प्रमुख ज्योतिर्लिंग है। शिवपुराण के अनुसार यहां भगवान शिव स्वंय प्रकट हुए थे। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ ही चार धाम और पंच केदार में से भी एक है।
माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। आइए जानते हैं केदारनाथ धाम कैसे बना।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी
बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला भाग है। यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे।
जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो इस युद्ध के रक्त संघार को देखकर भगवान शंकर पांडवों से रुष्ट हो गए थे। वहीं पांडव अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए शिव जी के दर्शन करना चाहते थे। अपने पाप का प्राश्चित करने के लिए पांडव कैलाश पर्वत पर महादेव के पास पहुंचे लेकिन शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और अंतर्ध्यान हो गए। पांडवों ने हार नहीं मानी और शिव की खोज में केदार पहुंच गए।
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए। सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए. भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया।
भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हुए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को हत्या के पाप मुक्त कर दिया। पांडवों ने भगवान से प्रार्थना की की वे इसी धड़ रूप में यहां रहें। शंकर भगवान ने तथास्तु कहा और केदार ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा के लिए यहां विराजमान हो गए।