IISER BHOPAL के वैज्ञानिकों ने फैसेट इंजीनियरिंग का उपयोग कर अधिक सक्षम लेजरों का किया विकास

देहरादून : भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान भोपाल (IISER BHOPAL) के शोधकर्ताओं ने कम थ्रेसहोल्ड गेन लेजर के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धि पाई है। उन्होंने सीजियम लेड ब्रोमाइड के छोटे क्रिस्टल में परिवर्तन की ऐसी प्रक्रिया विकसित की है जिससे उच्च तीव्रता के लेजर के विकास में बहुत कम ऊर्जा उत्सर्जन होगा।
हाल की इस प्रगति का प्रकाशन नैनो लेटर्स पत्रिका में किया गया है। शोध के प्रमुख प्रो. के.वी. आदर्श, प्रोफेसर, भौतिकी विभाग, आईआईएसईआर भोपाल और सह-लेखक आईआईएसईआर भोपाल (IISER BHOPAL) में ही उनके पीएचडी स्कॉलर श्री संतू के. बेरा और डॉ. मेघा श्रीवास्तव; और इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस, कोलकाता के प्रो. नारायण प्रधान और उनके छात्र डॉ. सुमन बेरा हैं।
आज विभिन्न उद्देश्यों से लेजर का व्यापक उपयोग किया जाता है, जिनमें दूरसंचार, प्रकाश व्यवस्था, डिस्प्ले, चिकित्सा निदान और चिकित्सा उपचार, बायोसेंसिंग और तंत्रिका विज्ञान शामिल हैं। लेजर प्रकाश का बहुत ही दिशात्मक, मोनोक्रोमैटिक और कोहेरेंट बीम होता है जो किसी बाहरी ऊर्जा से क्रिस्टल, गैस या सेमीकंडक्टर जैसे किसी माध्यम में परमाणुओं या अणुओं को एक्साइट कर पैदा किया जाता है। जब ये उत्तेजित परमाणु या अणु अपने निम्न ऊर्जा स्तर पर लौटते हैं तो प्रकाश उत्सर्जित करते हैं जो अन्य उत्तेजित परमाणुओं या अणुओं को अधिक प्रकाश उत्पन्न करने के लिए उत्तेजित करता है - परिणामस्वरूप बहुत तेज प्रकाश पुंज पैदा होता है जिसे हम लेजर कहते हैं।
कम थ्रेशोल्ड गेन लेजर उत्पन्न करने में दिलचस्पी काफी बढ़ी है क्योंकि इसमें लेजर बीम पैदा करने के लिए बहुत कम ऊर्जा लगती है। कम थ्रेशोल्ड गेन लेजर स्रोतों के रूप में सेमीकंडक्टर नैनोक्रिस्टल का अध्ययन किया जा रहा है जो मनुष्य के बाल की चौड़ाई से एक हजार गुना छोटे क्रिस्टल होते हैं।
आईआईएसईआर भोपाल (IISER BHOPAL) की टीम सीजियम लेड ब्रोमाइड नामक मटीरियल के नैनोक्रिस्टल पर शोध कर रही है। हालांकि यह मटीरियल बहुत मात्रा में फोटोल्यूमिनेसेंस उत्पन्न करता है जिसका अर्थ यह है कि इसमें लगी ऊर्जा से बहुत अधिक प्रकाश उत्सर्जन होता है लेकिन इसमें ऑगर रीकम्बिनेशन नामक एक चुनौती है। यह ऊर्जा के कुछ भाग का प्रकाश में बदलने के बजाय ऊष्मा बन जाने की घटना है।
इस समस्या के निदान के लिए आईआईएसईआर भोपाल (IISER BHOPAL) के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक ‘फैसेट इंजीनियरिंग’ का विकास किया है। इस तकनीक में नैनोक्रिस्टल का आकार बदल कर गेन थ्रेशहोल्ड कम किया जाता है।
शोध के बारे में बताते हुए प्रो. के.वी. आदर्श, आईआईएसईआर भोपाल (IISER BHOPAL) ने कहा, ‘‘हम नैनोक्रिस्टल के आकार को घन (6 फेस) से बदल कर रॉम्बिक्यूबोक्टाहेड्रॉन (26 फेस) करने से गेन थ्रेशहोल्ड पांच गुना कम करने में सक्षम हुए हैं जिसके परिणामस्वरूप इन नैनोक्रिस्टल को व्यावहारिक रूप से अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।’’
फैसेट इंजीनियरिंग जिस प्रक्रिया से ऑगर रीकम्बिनेशन की दर कम करता है अभी तक उसकी पूरी समझ नहीं प्राप्त है लेकिन शोधकर्ताओं का यह अनुमान है कि इसका संबंध इलेक्ट्रॉनों को क्रिस्टल के दायरे में रखने से है। फेस की संख्या बढ़ने से उन स्थानों की संख्या कम हो जाती है जहां इलेक्ट्रॉन और छिद्र दुबारा जुड़ सकते हैं। इस तरह ऊर्जा व्यर्थ होने से बचा जा सकता है।
यह शोध लेजर और क्वांटम फिजिक्स के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है और इन नैनो-डायमेंशनल मटीरियल्स के गुणों में बदलाव के नए साधन के रूप में फैसेट इंजीनियरिंग की क्षमता को सामने रखता है।