---Advertisement---

"सिर्फ फंड चाहिए, कानून नहीं?" ट्रंप ने क्यों लगाई हार्वर्ड पर 18,000 करोड़ की फंडिंग रोक?

---Advertisement---


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। ट्रंप ने हार्वर्ड को चेतावनी दी है कि अगर उसने “राजनीतिक और वैचारिक नफरत” को बढ़ावा देना जारी रखा, तो उसका टैक्स-मुक्त दर्जा छीना जा सकता है। यह विवाद न केवल अमेरिकी शिक्षा जगत बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है। आइए, इस मुद्दे की गहराई में उतरकर समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है और यह क्यों इतना महत्वपूर्ण है।

ट्रंप की चेतावनी: हार्वर्ड पर सख्ती का ऐलान

मंगलवार को डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि हार्वर्ड को दी गई टैक्स छूट पर पुनर्विचार किया जा सकता है, क्योंकि विश्वविद्यालय कथित तौर पर “राजनीतिक सक्रियता और आतंकवाद को बढ़ावा” दे रहा है। ट्रंप का तर्क है कि टैक्स छूट का लाभ केवल उन संस्थानों को मिलना चाहिए जो सार्वजनिक हित में काम करते हैं।

हार्वर्ड, जो दुनिया के शीर्ष शिक्षण संस्थानों में से एक है, को अमेरिका में टैक्स-मुक्त दर्जा प्राप्त है। यह दर्जा शैक्षणिक और धार्मिक संगठनों को उनके सामाजिक योगदान के लिए दिया जाता है। लेकिन ट्रंप का मानना है कि हार्वर्ड इस जिम्मेदारी को पूरा करने में विफल रहा है।

See also  ओहियो स्टेट की जीत के जश्न में हुआ बड़ा हादसा, जेडी वेंस बने ट्रोल का शिकार

विवाद की जड़: ट्रंप की मांगें और हार्वर्ड का इनकार

इस तनाव की शुरुआत तब हुई जब ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड को एक पत्र भेजकर कई कठोर मांगें रखीं। इनमें विश्वविद्यालय के प्रवेश प्रक्रिया, भर्ती नीतियों और प्रशासन में सरकारी हस्तक्षेप की मांग शामिल थी। इसके अलावा, ट्रंप ने हार्वर्ड से विविधता कार्यालय (डाइवर्सिटी ऑफिस) को बंद करने और कुछ छात्र संगठनों की मान्यता रद्द करने को कहा।

साथ ही, अंतरराष्ट्रीय छात्रों की जांच में इमिग्रेशन अधिकारियों की मदद करने का भी दबाव डाला गया। हार्वर्ड ने इन मांगों को असंवैधानिक और गैरकानूनी बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया। विश्वविद्यालय के अध्यक्ष एलन गार्बर ने एक खुले पत्र में स्पष्ट किया कि हार्वर्ड अपनी स्वायत्तता और संवैधानिक अधिकारों पर कोई समझौता नहीं करेगा। उन्होंने कहा, “कोई भी सरकार यह तय नहीं कर सकती कि हम क्या पढ़ाएं, किसे प्रवेश दें, या किसे नियुक्त करें।”

हार्वर्ड पर आर्थिक दबाव: फंडिंग पर रोक

ट्रंप ने हार्वर्ड के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए विश्वविद्यालय को मिलने वाली 2.2 अरब डॉलर (लगभग 18 हजार करोड़ रुपये) की सरकारी फंडिंग पर रोक लगा दी। इसके साथ ही, 6 करोड़ डॉलर के सरकारी अनुबंध भी रद्द कर दिए गए।

ट्रंप की ‘जॉइंट टास्क फोर्स टु कॉम्बैट एंटी-सेमिटिज्म’ ने दावा किया कि हार्वर्ड का रवैया अमेरिकी विश्वविद्यालयों में बढ़ती “चिंताजनक मानसिकता” को दर्शाता है, जहां संस्थान सरकारी फंडिंग तो चाहते हैं, लेकिन कानूनों का पालन करने से बचते हैं। यह कदम हार्वर्ड के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि सरकारी फंडिंग विश्वविद्यालय के शोध और संचालन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

See also  Earthquake : म्यांमार में तेज़ भूकंप, भारत के इस राज्य के लोगों में भी दहशत

गाजा युद्ध और परिसर में विरोध प्रदर्शन

इस विवाद की पृष्ठभूमि में गाजा युद्ध को लेकर अमेरिकी विश्वविद्यालयों में हुए विरोध प्रदर्शन भी महत्वपूर्ण हैं। गाजा में इजरायल के सैन्य अभियानों के खिलाफ कई कैंपस में प्रदर्शन हुए, जिनमें से कुछ हिंसक भी हो गए। इन प्रदर्शनों को ट्रंप प्रशासन ने “यहूदी-विरोधी” करार दिया है।

हार्वर्ड सहित कई विश्वविद्यालयों पर इन प्रदर्शनों को नियंत्रित न करने का आरोप लगाया गया है। ट्रंप ने पहले कोलंबिया यूनिवर्सिटी को भी इसी तरह की मांगों के साथ निशाना बनाया था, जिसने आंशिक रूप से इन मांगों को स्वीकार कर लिया था। लेकिन हार्वर्ड ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकारी दबाव को ठुकरा दिया।

हार्वर्ड का रुख: स्वतंत्रता की रक्षा

हार्वर्ड के अध्यक्ष एलन गार्बर ने अपने पत्र में जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय अपनी स्वतंत्रता और अकादमिक स्वायत्तता को बनाए रखेगा। उन्होंने छात्रों और शिक्षकों को आश्वस्त किया कि हार्वर्ड सरकार के सामने नहीं झुकेगा। यह रुख न केवल हार्वर्ड की प्रतिष्ठा को दर्शाता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि शैक्षणिक संस्थानों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त रहने का अधिकार है। इस विवाद ने अमेरिका में शिक्षा की स्वतंत्रता और सरकारी नियंत्रण के बीच तनाव को फिर से उजागर कर दिया है।

See also  हिजाब विवाद: ईरान में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प, 19 लोगों की मौत

वैश्विक परिप्रेक्ष्य: शिक्षा और राजनीति का टकराव

यह विवाद सिर्फ हार्वर्ड और ट्रंप तक सीमित नहीं है। यह एक बड़े सवाल को जन्म देता है: क्या सरकार को यह अधिकार है कि वह विश्वविद्यालयों के संचालन और पाठ्यक्रम में हस्तक्षेप करे? हार्वर्ड जैसे संस्थान न केवल शिक्षा बल्कि विचारों और नवाचार का केंद्र भी हैं। अगर सरकारें इन संस्थानों पर नियंत्रण करने लगेंगी, तो क्या यह अकादमिक स्वतंत्रता और वैश्विक शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करेगा? यह सवाल न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है।

ट्रंप और हार्वर्ड के बीच यह टकराव जल्द खत्म होने वाला नहीं है। एक तरफ ट्रंप का दावा है कि वह शिक्षा जगत में “नफरत और वैचारिक कट्टरता” को रोकना चाहते हैं, वहीं हार्वर्ड इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला मानता है। इस विवाद का असर न केवल हार्वर्ड बल्कि अन्य विश्वविद्यालयों और वैश्विक शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या हार्वर्ड अपनी स्वायत्तता को बरकरार रख पाता है, या ट्रंप प्रशासन अपने इरादों में कामयाब होता है।

Join WhatsApp

Join Now
---Advertisement---

Leave a Comment