इस उम्र के बच्चों की आंखों में दिखे अगर ये 7 लक्षण तो न करें नज़र अंदाज़, हो सकते हैं इस गंभीर बिमारी के संकेत

क्या आप जानते हैं कि किस उम्र में आप पूरी तरह से देखने में समर्थ हो जाते हैं? बता दें कि आठ साल की उम्र तक एक व्यक्ति या फिर यूं कहें कि एक बच्चा पूरी तरह से विजुअल मैच्योर हो जाता है।
इस उम्र में आकर एक या फिर दोनों आंखों में किसी भी प्रकार की दिक्कत लेजी आई (lazy eye), जिसे हिंदी भाषा में थकी-थकी आंखें या फिर एंबलायोपिया (amblyopia) कहते हैं। एंबलायोपिया, बच्चों में नेत्र रोग के सबसे अहम कारणों में से एक है। आमतौर पर ये बीमारी जन्म से लेकर 7 साल की उम्र के बच्चों में विकसित होती है।
किस परेशानी का सामना करते हैं बच्चे?
अगर किसी बच्चे को ये परेशानी होती है तो उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल इस स्थिति के विकसित होने पर बच्चे को एक या फिर दोनों आंखों से देखनेमें परेशानी होती है और ऐसा असामान्य रूप से देखने संबंधी विकार के कारण होता है। इसके अलावा जीवन के शुरुआती वर्षों में आंखों का दिमाग के साथ कनेक्शन भी खराब हो सकता है।
एंबलायोपिया के लक्षण (Symptoms of amblyopia)
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि इस परेशानी के किसी भी चेतावनी भरे संकेतों की पहचान करने के लिए आंखों की सही तरीके से जांच करने की जरूरत है, जिसमें शामिल हैंः
1-दो महीने की उम्र तक किसी चीज या फिर वस्तु पर ध्यान न लगा पाना।
2-अगर बच्चे की आंख अंदर या फिर बाहर की तरफ मुड़ी हुई दिखाई दे।
3-आंख के अंदर सफेद रंग का दिखाई देना।
4-बच्चे के चलते वक्त पास रखी चीजों से बार-बार टकराना।
5-टीवी देखते हुए या फिर पढ़ते हुए बच्चे का सिर का झुका हुआ होना
6-बार-बार आंखों को रगड़ना।
7-अगर बच्चा टीवी या फिर मोबाइल देख रहा हो तो वह स्क्रीन के बहुत करीब चला जाए या फिर बहुत नजदीक से किताबों को पढ़ता हो।
इनमें से किसी भी संकेत के दिखाई देने पर तुरंत आंखों की जांच कराने की जरूरत है ताकि शुरुआती उपचार किया जा सके। ज्यादातर मामलों में इस बीमारी का आसानी से पता नहीं लग पाता है इसलिए रूटीन आई चेकअप बहुत ही जरूरी हो जाता है, खासकर 3 से 5 साल की उम्र में ताकि एंबलायोपिया को रोका जा सके।
एंबलायोपिया का उपचार और रोकथाम
एंबलायोपिया, साफ न दिखाई देना या फिर भेंगापन के परिणामस्वरूप हो सकता है और समय पर इसके कारणों की पहचान कर इसका इलाज किया जा सकता है। इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 5 साल की उम्र से पहले हर बच्चे की आंखों की नियमित जांच की जाए। अगर बच्चे की पलकें झुकी हुई हैं या फिर उसकी आंखों में धब्बा है या फिर उसे भेंगापन है तो तुरंत आंखों की जांच की जरूरत है।