---Advertisement---

Jammu Kashmir Health Department : जम्मू-कश्मीर में डॉक्टरों की दोहरी चाल का भंडाफोड़! अब नहीं चलेगा प्राइवेट प्रैक्टिस का खेल

---Advertisement---


जम्मू-कश्मीर : जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर बनाने की दिशा में प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाया है। खास तौर पर उन डॉक्टरों पर नजर रखी जा रही है, जो सरकारी अस्पतालों में अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर निजी प्रैक्टिस को प्राथमिकता दे रहे हैं। हाल ही में सामने आए कुछ मामलों ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है, जिसके बाद सरकार ने ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का फैसला किया है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

सरकारी अस्पतालों में लापरवाही का खुलासा

जम्मू-कश्मीर के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को बेहतर इलाज मिले, यह सुनिश्चित करना प्रशासन की प्राथमिकता है। लेकिन कुछ डॉक्टरों की लापरवाही ने इस लक्ष्य को चुनौती दी है। कई बार देखा गया है कि जो डॉक्टर निजी अस्पतालों में दिन-रात मरीजों का इलाज करते हैं, वही सरकारी अस्पतालों में समय पर उपस्थित नहीं होते। मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता है, और कई बार उन्हें बिना इलाज के ही लौटना पड़ता है। ऐसे में मरीजों का भरोसा सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर कम होता जा रहा है।

See also  महिलाओं के लिए जबरदस्त खुशखबरी! हर महीने मिलेंगे 2500 रुपए, ऐसे उठाएं योजना का लाभ

हाल ही में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया, जिसमें एक डॉक्टर ने निजी अस्पतालों में हजारों सर्जरी कीं, लेकिन सरकारी अस्पताल में एक भी सर्जरी नहीं की। इस तरह की लापरवाही ने स्वास्थ्य विभाग को कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया।

निजी प्रैक्टिस पर सख्ती

स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में कार्यरत डॉ. हनीफ डार के खिलाफ कड़ा कदम उठाया। जांच में पता चला कि डॉ. हनीफ ने निजी अस्पतालों में 1807 सर्जरी कीं, जबकि जीएमसी श्रीनगर में उनकी ओर से कोई सर्जरी दर्ज नहीं थी। यह सरकारी नियमों का स्पष्ट उल्लंघन था। स्वास्थ्य विभाग के सचिव सैय्यद आबिद रशीद ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए डॉ. हनीफ को तत्काल प्रभाव से निजी प्रैक्टिस करने से रोक दिया।

See also  Waqf Law : वक्फ कानून पर बवाल! ममता बनर्जी के बयान ने खड़ा किया नया विवाद

यह कार्रवाई जम्मू-कश्मीर सेवा आचरण नियमों और चिकित्सा संकाय के दिशा-निर्देशों के तहत की गई। स्वास्थ्य विभाग ने साफ कर दिया है कि सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों को अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी निभानी होगी। निजी प्रैक्टिस को प्राथमिकता देना अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की कोशिश

जम्मू-कश्मीर प्रशासन का यह कदम केवल एक डॉक्टर तक सीमित नहीं है। स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की उपस्थिति और उनके प्रदर्शन की निगरानी शुरू कर दी है। हाल ही में जारी एक आदेश में कहा गया है कि डॉक्टरों को अपने निर्धारित समय पर अस्पतालों में मौजूद रहना होगा। इससे न केवल मरीजों को समय पर इलाज मिलेगा, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था में भी सुधार होगा।

नेशनल मेडिकल कमीशन के आंकड़ों के मुताबिक, जून 2022 तक जम्मू-कश्मीर मेडिकल काउंसिल में 17,574 एलोपैथिक डॉक्टर पंजीकृत थे। इतनी बड़ी संख्या में डॉक्टर होने के बावजूद, मरीजों को समय पर इलाज न मिलना चिंता का विषय है। प्रशासन का मानना है कि सख्त नियम और निगरानी से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

See also  Mumbai Terror Attack : 18 दिनों तक एनआईए की कस्टडी में तहव्वुर राणा, जेल में मांगी ये तीन चीजें

मरीजों के लिए उम्मीद की किरण

यह कदम जम्मू-कश्मीर के उन लाखों मरीजों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया है, जो सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हैं। बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं न केवल लोगों का भरोसा जीतेंगी, बल्कि उनकी जिंदगी को भी आसान बनाएंगी। प्रशासन का यह प्रयास निश्चित रूप से सरकारी अस्पतालों को और जवाबदेह बनाने में मदद करेगा।

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सख्ती कितना बदलाव लाती है। लेकिन एक बात तो साफ है कि जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अब कोई समझौता नहीं होगा।

Join WhatsApp

Join Now
---Advertisement---

Leave a Comment