Waqf Amendment Act : आज सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होने जा रही है। इस कानून का विरोध न केवल मुस्लिम संगठन और विपक्षी दल कर रहे हैं, बल्कि सिख समुदाय के एक प्रमुख व्यक्ति, दया सिंह, ने भी इसके खिलाफ याचिका दायर की है। गुड़गांव के गुरुद्वारा सिंह सभा के अध्यक्ष दया सिंह की याचिका ने इस मामले को नया आयाम दिया है। आइए, जानते हैं कि दया सिंह की दलीलें क्या हैं और यह कानून क्यों चर्चा में है।
दया सिंह का दृष्टिकोण
दया सिंह ने अपनी याचिका में वक्फ संशोधन कानून को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। उनका कहना है कि सिख धर्म में दान-पुण्य और धार्मिक भाईचारे की भावना सर्वोपरि है। वह मानते हैं कि यह कानून गैर-मुसलमानों को वक्फ संपत्ति के लिए दान करने से रोकता है, जो संपत्ति की स्वायत्ता और धार्मिक अभिव्यक्ति के अधिकार को सीमित करता है। सिंह के अनुसार, धार्मिक पहचान के आधार पर किसी को दान करने से रोकना संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के खिलाफ है।
सिंह ने यह भी तर्क दिया कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है। जहां हिंदू और सिख समुदाय अपनी धार्मिक संपत्तियों को स्वतंत्र रूप से प्रबंधित कर सकते हैं, वहीं मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों के लिए विशेष नियम लागू करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। उनकी याचिका में वक्फ बाई यूजर को खत्म करने, वक्फ के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त और गैर-मुसलमानों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने जैसे प्रावधानों पर भी सवाल उठाए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
आज दोपहर 2 बजे से सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल हैं, इस मामले की सुनवाई करेगी। दया सिंह की याचिका को वरिष्ठ वकील श्वेतांक सैलाकवाल ने दायर किया है। इसके अलावा, असदुद्दीन ओवैसी, महुआ मोइत्रा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, और अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर भी सुनवाई होगी। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता बल्कि संपत्ति के अधिकार और संवैधानिक समानता जैसे मुद्दों को छूता है।
कानून का विरोध
वक्फ संशोधन कानून का विरोध ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठनों और विभिन्न विपक्षी दलों ने किया है। कई याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह कानून धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है और मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों के प्रबंधन में अनावश्यक हस्तक्षेप करता है। दया सिंह की याचिका इस मामले को और व्यापक बनाती है, क्योंकि यह सिख समुदाय की ओर से एकजुटता और धर्मनिरपेक्षता की बात करती है।
क्या होगा आगे?
यह सुनवाई न केवल वक्फ संशोधन कानून की वैधता पर फैसला देगी, बल्कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों के भविष्य को भी प्रभावित कर सकती है। दया सिंह जैसे याचिकाकर्ताओं की दलीलें संविधान की मूल भावना को सामने लाती हैं, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस कानून के भविष्य और धार्मिक समुदायों के बीच आपसी सहयोग पर गहरा प्रभाव डालेगा।